अपनी तारीफ़
उलझा हुआ दिखता हूं शायद सुलझा हूं । अपने बारे में, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में हमेशा परेशानी होती है। सलाह अच्छी देता हुं, राजदार अच्छा हुं, इस्लिये कुछ लोगों के अंतरंग का गवाह हूं। किताब, क्रिकेट, सिनेमा, नाटक, संगीत और प्रेम में गहरी दिलचस्पी है। घर में सबसे आलसी, लापरवाह और नालायक (वैसे ये विशेषण मेरे एक दोस्त का दिया है) हूं। गप्प करने की क्षमता असाधारण है अगर मंडली मन माफ़िक हो। उम्र में बडो की संगती भाती है। जो लोग मुझ नहीं पहचान पाते है उनके लिये रुड, घमंडी, एरोगेंट हूं। अपने इर्द गिर्द एक दीवार बनाये हुए हूं जिसमे घुसने की इजाजत कुछ ही लोगो को है। अगम्भीर किस्म का गम्भीर इन्सान हूं। अपने व्यवहार का आकलन करने के बाद इतना ही जान पाया हूं बाकि मेरे मित्र और घर के लोग बता पायेंगे। किताबों के बाहर की दुनिया में सीखने कि लिये ज्यादा कुछ है…ऐसा मानना है। क्या कर रहा हूं ये बताने मुझे मजा नहीं आता…और जिस काम में मजा नहीं आता वो करता नहीं हूं इसलिये इतना ही….